Автор Тема: Ахкамы сафара (путешествия)  (Прочитано 3495 раз)

Оффлайн Абд-ур-Рахман

  • Ветеран
  • *****
  • Сообщений: 4761
Ахкамы сафара (путешествия)
« : 05 Июля 2016, 19:14:59 »
Как рассчитывается расстояние сафара в ханафитском мазхабе

Исходное положение ханафитского мазхаба состоит в том, что человек становится мусафиром (путником), когда он пересекает границу последних жилых зданий в своем городе или селе с целью путешествия на расстояние трех дней пути (1). Таким образом, три дня пути считается расстоянием сафара. Это время рассчитывается на основе умеренного темпа ходьбы верблюда между рассветом и зенитом трех коротких дней в году в землях, расположенных вдоль или вблизи экватора (2). Если это расстояние покрывается за более короткий промежуток времени, этот человек все равно считается мусафиром, несмотря на то, что он не путешествовал в течение полных трех дней (3).

Первоначальное мнение в ханафитском  мазхабе не предусматривало каких-либо фиксированных измерений для этого расстояния. Однако когда мусульманам стало трудно рассчитать, какое расстояние составляют «три дня пути», ведущие факихи предложили три основных значения для расстояния сафара. Самыми известными считаются три следующих значения:

-15 фарсахов,
- 18 фарсахов,
- 21 фарсах.

Большинство имамов Хорезма поддерживали первое мнение и выдали фетву в соответствии с ним (5). Это мнение также передавалось от имама Мухаммада (6) и имама аль-Касани (ум. в 587 г. хиджры), который в своей работе «Бадаи ас-Санаи» утверждал, что один день путешествия составляет примерно 5 фарсахов (7).

Однако, большинство авторитетных правоведов высказались в пользу второго мнения и выдали фетву в соответствии с ним, в их числе были имам Бурхануддин Махмуд ибн Мазах аль-Бухари, автор «Аль-Бахр аль-Мухит» (ум. в 616 г. хиджры) и имам Бурхануддин аль-Маргилани, автор книги «Аль-Хидайя» (ум. в 593 г. хиджры) (9).

1 фарсах эквивалентен 3 шариатским милям, 1 шариатская миля составляет 4000 локтей (10) или примерно 2000 ярдов (11). Это соответствует 1,15 английским милям или 1,85 км (12). Таким образом, 15 фарсахов (45 шариатских миль) равны 51,7 английским милям или 83,3 км. Соответственно, 18 фарсахов (54 шариатских мили) равны 62 английским милям или 99,9 км (13).

Имам Малик передает в своей работе «Муватта» от Ибн Умара (ؓ), что они считали расстояние сафара как три барида (14). Имам Аль-Бухари также передает эту точку зрения в своем Сахихе от этих же передатчиков (15). Кроме того, имам Мухаммад передает с достоверной цепочкой от Ибн Умара, что он считал расстояние сафара как трехдневное путешествие в умеренном темпе (16). Мауляна Зафар Ахмад ас-Санави утверждает (в соответствии с этим мнением), что трехдневное путешествие в умеренном темпе – это и есть расстояние в 4 барида (17).

1 барид равен 4 фарсахам или 12 шариатским милям. Таким образом, 4 барида составляют 48 шариатских миль. Это эквивалентно 55 английским милям или 88,8 км (18)

Мнения о 4 баридах придерживались имамы Малик, Ахмад, а также имам Шафии, в соответствии с одним его мнением, которое от него передается (19). Более того, это мнение поддерживается сообщением от самого Пророка (мир ему и благословение), но со недостатками в иснаде (20). Это мнение не сильно отличается от мнения о 15 фарсахах, которого придерживался имам Мухаммад при поддержке имама Касани, и на которое дали фетву имамы Хорезма.

Исходя из этих соображений многие из авторитетных ученых Деобанда приняли мнение о 4 баридах или 48 шариатских милях. Мауляна Рашид Ахмад Гангохи поддержал эту точку зрения (21), и вслед за ним алляма Анвар Шах Кашмири (22), алляма Шаббир Ахмад аль-Усмани (23), мауляна Захария аль-Кандехляви (24), мауляна Юсуф аль-Биннори (25) и мауляна Зафар Ахмад аль-Усмани (26). Также это мнение предпочитал Шах Валиулла аль-Мухаддис ад-Дехляви (27).

Таким образом, самым правильным мнением будет такое, что расстояние сафара составляет 4 барида или 48 шариатских миль – 55 миль или 88,8 км.
 

Подготовил Замиль ар-Рахман, студент Даруль Ифта,
Проверено и одобрено муфтием Ибрагимом Десаи
__________________________

[1] قلت: أرأيت المسافر هل يقصر الصلاة في أقل من ثلاثة أيام؟ قال: لا. قلت: فإن سافر مسيرة ثلاثة أيام فصاعدا؟ قال: يقصر الصلاة حين يخرج من مصره. قلت: ولم وقت ثلاثة أيام؟ قال: لأنه جاء أثر عن النبي صلى الله عليه وسلم أنه قال: لا تسافر المرأة ثلاثة أيام إلا ومعها ذو محرم، فقست على ذلك، وبلغني عن إبراهيم النخعي وسعيد بن جبير أنهما قالا إلى المدائن ونحوها. (الأصل للإمام محمد، دار ابن حزم، ج١ ص٢٣٢-٢٣٣)
محمد عن يعقوب عن أبي حنيفة رحمهم الله: رجل خرج من الكوفة إلى المدائن قال: قصر وأفطر، ويقصر في مسيرة ثلاثة أيام ولياليا سير الإبل ومشي الأقدام (الجامع الصغير مع النافع الكبير، إدارة القرآن، ١٠٨-١٠٩)
قال أبو حنيفة: لا تقصر الصلاة في أقل من ثلاثة أيام ولياليها بسير الإبل ومشي الأقدام، وقال أهل المدينة: تقصر الصلاة في أربعة برد، وذلك ثمانية وأربعون ميلا (الحجة على أهل المدينة، ج١ ص١٦٦)
قال أبو جعفر: ومن سافر يريد مسيرة ثلاثة أيام فصاعدا قصر الصلاة إذا جاوز بيوت مصره، وإن سافر يريد دون ذلك لم يقصر (مختصر الطحاوي، ص٣٣)
ولا اعتبار بالفراسخ...على المذهب لأن المذكور في ظاهر الرواية اعتبار ثلاثة أيام كما فى الحلبة، وقال فى الهداية: هو الصحيح، اخترازا عن قول عامة المشايخ من تقديرها بالفراسخ (رد المحتار، دار عالم الكتب، ج٢ ص٦٠٢)
والتقدير بثلاثة أيام هو ظاهر المذهب، وهو الصحيح، وعامة المشايخ قدره بالفراسخ (النهر الفائق، دار الكتب العلمية، ج١ ص٣٤٥)

[2] فى الدر المختار: مسيرة ثلاثة أيام ولياليها من أقصر أيام السنة، ولا يشترط سفر كل يوم إلى الليل بل إلى الزوال، ولا اعتبار بالفراسخ على المذهب، بالسير الوسط مع الإستراحات المعتادة حتى لو أسرع فوصل في يومين قصر (رد المحتار، دار عالم الكتب، ج٢ ص٦٠١-٦٠٣)
في رد المحتار: المراد من التقدير بأقصر أيام السنة إنما هو فى البلاد المعتدلة التي يمكن قطع المرحلة المذكورة في معظم اليوم من أقصر أيامها، فلا يرد أن أقصر أيام السنة في بلاد بلغار قد يكون ساعة أو أكثر أو أقل فيلزم أن يكون مسافة السفر فيها ثلاث ساعات أو أقل، لأن القصر الفاحش غير معتبر كالطول الفاحش (رد المحتار، دار عالم الكتب، ج٢ ص٦٠٢)
فنقدره بمسيرة ثلاثة أيام ولياليها من أقصر أيام الشتاء لأن الأيام للمشي والليالي للإستراحة، وبعض المشايخ رحمهم الله قدرها بالفراسخ فمنهم من قدرها بخمسة عشر فرسخا ومنهم من قدرها بثمانية عشر فرسخا ومنهم من قدرها بأحد وعشرون فرسخا ومنهم من قدرها بثلاث مراحل (شرح الجامع الصغير للقاضيخان، ص٢٩٧-٢٩٨)
لو بكر فى اليوم الأول ومشى إلى الزوال، ثم فى الثاني والثالث كذلك قصر (النهر الفائق، ج١ ص٣٤٥)

[3] فى الدر المختار: مسيرة ثلاثة أيام ولياليها من أقصر أيام السنة، ولا يشترط سفر كل يوم إلى الليل بل إلى الزوال، ولا اعتبار بالفراسخ على المذهب، بالسير الوسط مع الإستراحات المعتادة حتى لو أسرع فوصل في يومين قصر (رد المحتار، دار عالم الكتب، ج٢ ص٦٠١-٦٠٣)
فإن كان بينه وبين مقصده مسيرة ثلاثة أيام ولياليها ويقصر الصلاة وإن قطعها في أقل منها (شرح الجامع الصغير للقاضيخان، ص٢٩٨)

[4] وكذا فى الفتح من أنه قيل: يقدر بأحد وعشرين فرسخان، وقيل بثمانية عشر، وقيل بخمسة عشر، وكل من قدر منها اعتقد أنه مسيرة ثلاثة أيام ا ه أي بناء على اختلاف البلدان، فكل قائل قدر ما في بلده من أقصر الأيام (رد المحتار، دار عالم الكتب، ج٢ ص٦٠١-٦٠٣)

[5] السفر الذي تتغير به الأحكام أن يقصد الإنسان موضعا بينه وبين مقصده مسيرة السفر ثلاثة أيام بسير الإبل ومشي الأقدام...ط معنى قوله: مسيرة ثلاثة أيام أي مع الإستراحات التي تتخللها، سط ثلاثة أيام من أقصر أيام الشتاء المعتبر سير العير لأنه الوسط، ط وروي ثلاث مراحل وهو قريب من الأول...وعامة مشايخنا قدروها بالفراسخ: إحدى وعشرون فرسخا وقيل: بثمانية عشر فرسخا وعليه الفتوى، وقيل: بخمسة عشر، وبه أفتى أكثر أئمة خوارزم، وعن مالك والشافعي في قول: ستة عشر فرسخا (المجتبى، مخطوط، ٤٥/ب)

[6] وعن محمد أنه اعتبر خمسة عشر فرسخا (النافع الكبير، ص١٠٩)

[7] واختلفت أقوال الشافعي فيه، قيل: ستة وأربعون ميلا، وهو قريب من قول بعض مشايخنا، لأن العادة أن القافلة لا تقطع في يوم أكثر من خمسة فراسخ (بدائع الصنائع، ج١ ص٤٦٨)

[8] والفتوى على ثمانية عشر لأنها أوسط الأعداد (المحيط البرهاني، إدارة القرآن، ج٢ ص٣٨٥)

[9] ثم اختلفوا، فقيل: أحد وعشرون وقيل ثمانية عشر وشيل خمسة عشر، والفتوى على الثاني لأنه الأوسط، وفى المجتبى: فتوى أئمة خوارزم على الثالث (رد المحتار، ج٢ ص٦٠٢)
قال المرغيناني: وعامة المشايخ قدروها بالفراسخ، فقيل: احد وعشرون فرسخا وقيل ثمانية عشر فرسخا، قال المرغيناني: وعليه الفتوى، وقال العتابي في جوامع الفقه: وهو المختار، وقيل: خمسة عشر فرسخا، واختيار صاحب الهداية أولى (شرح منية المصلي، ص٥٣٥)
وقال المرغيناني: وعامة المشايخ قدروها بالفراسخ، فقيل: أحد وعشرون فرسخا، وقيل: ثمانية عشر فرسخا، قال المرغيناني: وعليه الفتوى (البناية شرح الهداية، دار الكتب العلمية، ج٣ ص٤)

[10] الفرسخ ثلاثة أميال، والميل: أربعة آلاف ذراع (رد المحتار، ج٢ ص٦٠٢)

[11] جواهر الفقه، ج٣ ص٤٢٤، أحسن الفتاوى، ج٤ ص٩٣

[12] الإيضاح والتبيان في معرفة المكيال والميزان، دار الفكر، ص٧٧
عند الحنفية...الميل ١٨٥٥ مترا (المكاييل والموازين الشرعية، القدس، ص٥٣)

[13] صحيح اور مناسب تر مسافت سفر، ص٣

[14] وحدثني عن مالك عن ابن شهاب عن سالم بن عبد الله عن أبيه أنه ركب إلى ريم، فقصر الصلاة في مسيرة ذلك، قال يحيى: قال مالك: وذلك نحو من أربعة برد، وحدثني عن مالك عن نافع عن سالم بن عبد الله أن عبد الله بن عمر ركب إلى ذات النصب فقصر الصلاة في مسيرة ذلك، قال يحيى: قال مالك: وبين ذات النصب والمدينة أربع برد...وحدثني عن مالك أنه بلغه أن عبد الله بن عباس كان يقصر الصلاة في مثل ما بين مكة والطائف وفي مثل ما بين مكة وعسفان، وفي مثل ما بين مكة وجدة، قال مالك: وذلك أربعة برد، وذلك أحب ما تقصر إلي فيه الصلاة (أوجز المسالك، دار القلم، ج٣ ص١٧٩-١٨٦)

[15] وكان ابن عمر وابن عباس يقصران ويفطران في أربعة برد، وهو ستة عشر فرسخا (صحيح البخاري، مكتبة الملك فهد، ج١ ص٣٠٩)

[16] محمد قال: أخبرنا سعيد بن عبيد الطائي عن علي بن ربيعة الوالبي قال: سألت عبد الله بن عمر رضي الله تعالى عنهما: إلى كم تقصر الصلاة؟...قال: هي ثلاث ليال قواصد، فإذا خرجنا إليه قصرنا الصلاة. قال محمد: وبه نأخذ، وهو قول أبي حنيفة (كتاب الآثار، دار النوادر، ج١ ص٢٠٤) وصححه في إعلاء السنن، إدارة القرآن، ج٧ ص٢٧٣

[17] قلت: ولا خلاف بينه وبين أثر المتن، فإن التحديد بأربعة برد في هذا إنما هو من عطاء لا من قول ابن عمر، فلا يلزم منه كون ابن عمر قائلا بالتحديد بالبرد والأميال، بل إنما قصر لكون المسافة مسافة ثلاثة أيام عنده، واتفق به كونها أربعة برد أيضا (إعلاء السنن، ج٧ ص٢٧٣)

[18] صحيح اور مناسب تر مسافت قصر، ص٣

[19] إذا كان السفر ستة عشر فرسخا استباح الرخص، وبه قال أكثره...دليلنا: قوله صلى الله عليه وسلم: يا أهل مكة لا تقصروا في أقل من أربعة بردا من مكة إلى عسفان، ولأنه مذهب ابن عباس وابن عمر وابن مسعود (رؤوس المسائل فى الخلاف، دار خضر، ص ٢٠١)
وذهب مالك إلى أن أقل مدة السفر التي يقصر فيها أربعة برد، وبه قال الشافعي وأحمد وجماعة، وهي ستة عشر فرسخا، أي: ثمانية وأربعون ميلا، والمستند لهم حديث: يا أهل مكة لا تقصرو في أقل من أربعة برد، أخرجه الدارقطني والبيهقي والطبراني، سنده متكلم فيه، لكنه مؤيد بفعل ابن عمر وابن عباس، كما أخرجه مالك والبيهقي وغيرهما أنهما كانا يقصران في أربعة برد (التعليق الممجد، دار القلم، ج١ ص٥٦٠)

[20] وذهب مالك إلى أن أقل مدة السفر التي يقصر فيها أربعة برد، وبه قال الشافعي وأحمد وجماعة، وهي ستة عشر فرسخا، أي: ثمانية وأربعون ميلا، والمستند لهم حديث: يا أهل مكة لا تقصرو في أقل من أربعة برد، أخرجه الدارقطني والبيهقي والطبراني، سنده متكلم فيه، لكنه مؤيد بفعل ابن عمر وابن عباس، كما أخرجه مالك والبيهقي وغيرهما أنهما كانا يقصران في أربعة برد (التعليق الممجد، دار القلم، ج١ ص٥٦٠)
حدثني أحمد بن محمد بن زياد حدثنا إسماعيل الترمذي حدثنا إبراهيم بن العلاء حدثنا إسماعيل بن عياش عن عبد الوهاب بن مجاهد عن أبيه وعطاء بن أبي رباح عن ابن عباس أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: يا أهل مكة لا تقصروا الصلاة في أدنى من أربعة برد، من مكة إلى عسفان (سنن الدارقطني، مؤسسة الرسالة، ج٢ ص٢٣٢)
حدثنا عبدان بن أحمد ثنا هشام بن عمار ثنا إسماعيل بن عياش ثنا ابن مجاهد عن أبيه وعطاء عن ابن عباس رضي الله عنهما قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: يا أهل مكة لا تقصروا الصلاة في أدنى من أربع برد، من مكة إلى عسفان (المعجم الكبير، ج١١ ص٩٦-٩٧)
وعبد الوهاب بن مجاهد بن جبر متروك الحديث

[21] چار بريد جس كى سوله سوله ميل كى تين منزليں ہوتى ہىں حديث موطا مالك سے ثابت ہوتى ہيں (تأليفات رشيدية، إدارة اسلاميات لاهور، ٣٥٨)
وأما أن مقدار الذي يعد به مسافرا شرعيا ما اخترناه، فالدليل عليه ما رواه مالك مرفوعا [قلت: بل موقوفا]: لا نقصر من أقل من أربعة بردا ونحو ذلك، والبريد أربع فراسخ، والفرسخ قريب من ثلاثة أميال إلى الزيادة (الكوكب الدري، إدارة القرآن، ج١ ص٤٣٩)

[22] ومسافة القصر فى المذهب مسيرة ثلاثة أيام ولياليها، ثم حولوها إلى التقدير بالمنازل، فاختلفوا فيه على أقوال، منها: ستة عشر فرسخا كل فسخ ثلاثة أميال فتلك ثمانية وأربعون ميلا، كما فى الحديث، وبه أفتي لكونه مذهب الآخرين (فيض الباري، دار الكتب العلمية، ج٢ ص٥٣٤)
ونقل عنه صاحب العرف الشذي: وأقوال الحنفية في مسافة القصر كثيرة، ذكرها فى البحر، والأقوال من ستة عشر فرسخا إلى اثنتين وعشرين فرسخا، وفي قول: ثمانية وأربعون ميلا، وهو المختار لأنه موافق لأحمد والشافعي (العرف الشذي، دار إحياء التراث العربي، ج٢ ص٤٩)

[23] والفرسخ ثلاثة أميال، فالقول الثالث [٤٥ ميل شرعي، الذي أفتى به أكثر أئمة خوارزم] قريب من القول بأربعة برد وهي ستة عشر فرسخا (٤٨ ميل شرعي)، كما هو مذهب مالك وغيره. وقد روى البخاري تعليقا في صحيحه والبيهقي إسنادا عن عطاء بن أبي رباح أن ابن عمر وابن عباس كانا يصليان ركعتين ويفطران في أربعة برد. قال أبو عمر بن عبد البر: هذا عن ابن عباس معروف من نقل الثقات، متصل الإسناد عنه من وجوه، وقد اختلف عن ابن عمر في تحديد ذلك اختلافا كثيرا، وأصح ما روي عن ما رواه ابنه سالم ونافع أنه لا يقصر إلا فى اليوم التام أربعة برد. ا ه. قلت: وهذا هو المختار عند شيوخنا، وقد أفتى به مولانا الشيخ رشيد أحمد الجنجوهي قدس الله روحه. (فتح الملهم، دار إحياء التراث العربي، ج٤ ص٣٩٤-٥) وهو قول الشاه ولي الله الدهلوي أيضا كما نقله عنه في فتح الملهم في نفس الصفحة

[24] وعن مالك: لا يقصر في أقل من ثمانية وأربعين ميلا هاشمي، وذلك ستة عشر فرسخا، وهو قول أحمد، انتهى [من عمدة القاري]...ولا يذهب عليك أن الشيخ الجنجوهي على ما حكاه والدي في تقرير الترمذي قال: إن الصحيح فى استدلال الحنفية هي رواية مالك فى الموطأ: أربعة برد، وعلى هذا فلا خلاف بين الأئمة في ذلك (أوجز المسالك، دار القلم، ج٣ ص١٧٨-١٨١)

[25] وما ذهب إليه الشافعي [من كون مسافة السفر ٤٨ ميل] هو قول لمشايخنا، وهو المختار لموافقته الشافعي وأحمد (معارف السنن، ايج ايم سعيد، ج٤ ص٤٧٤)

[26] والفتوى على خمسة عشر منها كما تقدم فإنها أربع برد أو نحوها، وقد ورد هذا التحديد عن ابن عباس وغيره، وورد ذلك مرفوعا أيضا وإن كان ضعيفا، واختاره مالك، فأفتى به المتأخرون منا تسهيلا للعوام، فإن أربعة برد هي قدر مسافة ثلاثة أيام تقريبا (إعلاء السنن، إدارة القرآن، ج٧ ص٢٨٤)

[27] قال الشيخ ولي الله الدهلوي قدس الله سره:...ومن لازمه أن يكون مسيرة يوم تام، وبه قال سالم، لكن مسيرة أربعة برد متيقن، وما دونه مشكوك، وصحة هذا الاسم يكون بالخروج من سور البلد أو حلة القرية أو بيوتها بقصد موضع هو على أربعة برد (فتح الملهم، ج٤ ص٤٩٥
 _________________________

Перевод с английского языка Azan.kz
Askimam.org

Оффлайн abu_umar_as-sahabi

  • Ветеран
  • *****
  • Сообщений: 10035
Re: Ахкамы сафара (путешествия)
« Ответ #1 : 06 Августа 2016, 19:44:26 »
Путнику разрешается не соблюдать пост
 (Шафиитская фатва)
 
Одной из причин, дозволяющих прерывать или вовсе не держать пост, является сафар. Путнику по шариату дано «рухса» (облегчение) на это.
 
Доводом этому служат как аят из Корана, так и многочисленные хадисы посланника Аллаха, ﷺ.
 
Всевышний Аллах говорит в Коране:
 
ومَن كان مَريضًا أو عَلى سَفَرٍ فَعِدَّة من أيَّام أُخر
 
Смысл: «Тот, кто болен или находится в пути, и отпустил пост, пусть возместит эти дни».
 
В «Сахихе» имама Муслима приводится хадис о том, что Посланник Аллаха, в год взятия Мекки направился к ней во время Рамадана будучи постящимся, пока не достиг местности «Кираа Аль-Гамима». Сподвижники также держали пост, затем Он потребовал принести стакан воды и, подняв его так, чтоб видели люди, выпил. После этого ему сказали: «Некоторые люди продолжали поститься». Он сказал на это: «Они-то и ослушники! Они и есть ослушники!»
 
Слова посланника Аллаха, ﷺ, о том, что те, кто не отпустил в этот день в пути свой пост, являются ослушниками, комментируются тем, что им или же было велено пророком отпустить пост в связи с предстоящей встречей с врагом, который был очень близко, или же то, что те, кому вредит пост и не отпускает его воистину ослушался и впал в грех, как это пишет Имам Навави в своем шархе на «Сахих» Муслима (1)
 
Но для того, чтоб путник смог отпустить свой пост или вовсе не держать его, существуют несколько условий, без которых он не имеет право на прерывание поста.
 
Первое условие: чтоб сафар был длинным, в котором разрешается сокращать намазы - это по нашим меркам сафар более 86 километров пути
 
Второе условие: чтоб сафар был дозволенным по шариату. Если человек вышел в сафар для совершения того, что запрещено по шариату, к примеру, для покупки спиртных напитков, для разбойничества, для ограбления, для участия в запрещённых по шариату боях, то ему не разрешено отпускать пост
 
И третье условие: чтоб он вышел в сафар до наступления рассвета того, дня, в котором он собирается прервать пост. Если же ночью человек вознамерился выйти в путь, но вышел только после рассвета, без разницы до восхода солнца или после, то ему уже не разрешено прервать свой пост в это день. Если его сафар длится несколько дней, то на следующие дни он может прервать пост, даже если вышел в путь после рассвета
 
Под сафаром мы имеем в виду дни отъезда и приезда, а также три дня нахождения в пункте назначения, в то есть все эти дни путник имеет право не держать пост при соблюдении вышеперечисленных условий. Если же в первый день своего сафара путник не успел выйти до рассвета и держал пост, то в последующие три дня в сафаре он может не держать его, так как условием не является, чтоб в первый день он отпустил пост для дальнейшего облегчения не держать пост.
 
После того, как путник вернулсяв свой город или село, и если он в пути держал пост, то по приезду ему не разрешено прерывать его. Также путник имеет право не держать пост, даже если он знает, что завтра в обед он доедет до своего города.
 
Но если путник не держал пост, пользуясь облегчением, и прибыл в свой город до захода солнца, то он не обязан совершать «имсак» - воздерживаться от еды и питья и т.д., но ему желательно это сделать (2).
 
А если спросить: что лучше путнику: держать пост в сафаре или отпустить? - то сильным мнением в нашем мазхабе является следующее: если для него затруднения от поста, и пост не приведет к болезни или другим пагубным последствиям, то ему лучше поститься, а если из-за поста сафар для него становится затруднительным, или он может заболеть и т.д. то ему лучше не держать пост (3).
 
Важное примечание: Условием дозволенности несоблюдения и прерывания поста в сафаре является наличие намерения на «рухса» (облегчение), чтоб этим можно было отличить пост, отпускаемый по причине, от поста, отпускаемого без причины (4). Под намерением на «рухса» подразумевается то, что во время прерывания поста он должен быть убежден, что ему разрешено прервать пост и это облегчение для него предоставлено шариатом. («Хашияту Джамал» 2/332) (5).
 
Тот, кто не имел намерение на «рухса» во время прерывания поста впадает в грех, как об этом пишет Шабрамалюси (6).
 
То, что путнику разрешается отпускать пост или вовсе не держать в пути, означает отсутствие греха за это, но он обязан восполнить эти посты по приезду из сафара. Также в сафаре не разрешено отпускать возмещааемый пост, который он пропустил без причины (7)
 
А Аллах знает лучше!
 
 
Подготовил: Муса Багилов
 
 
 
(1)   وهذا محمولٌ على مَن تضرَّر بالصَّومِ أو أنَّهم أُمرُوا بالفطرِ أمرًا جازمًا لمصلحةِ بيانِ جوازِه فخالفوا الواجبَ، وعلى التقديرَين لا يكون الصَّائمُ اليومَ في السفر عاصيًا إذا لم يتضرَّرَ به ..
(2)  فإِنْ كانا مفطرَين - ولو بتركَ النِّيةِ - استحبَّ لهما الإمساكُ، لحُرمةِ الوقتِ. من اعانة الطالبِين
(3)  إن تضرَّر بالصَّومِ فالفطرُ أفضلُ، وإلَّا فالصَّومُ أفضلُ. من التحفة
(4)  ويُشترَط في حِلِّ الفطرِ بالعذرِ قصدُ الترخُّصِ على الأوجه كمحصر يريد التحلل، وليتميَّزَ الفطرُ المباحُ من غيرِهِ
(5)  (قولُهُ: بنيَّة الترخُّصِ) المرادُ بها اعتقادُ أنَّ الإفطارَ جائزٌ له حينئذٍ وأنَّ الشَّرعَ يسهل له هذا الأمرَ بتجويزه له
(6)  حاشية الشبراملسي 3/187: (قولُهُ: في جوازِ الترخُّصِ نيَّته) مفهومُه الإثمُ إذا لم ينوِ ذلكَ
(7) وَلا –أي لا يُباحُ الفطرُ - لمن صامَ قضاءً لزمَه الفورُ فيه. من التحفة
Доволен я Аллахом как Господом, Исламом − как религией, Мухаммадом, ﷺ, − как пророком, Каабой − как киблой, Кораном − как руководителем, а мусульманами − как братьями.