АЛИ(МИР ЕМУ!) ПИЛ АЛКОГОЛЬ?
В своей клевете на Имама Али(мир ему!) сунниты дошли до того, что обвинили его в употреблении вина. Известно, что он был воспитан самим Посланником Аллаха(да благословит его Аллах и род его!) и никогда не употреблял вина, не бежал с поля битвы, и был в своей жизни вдохновлен Аллахом, почему и следовал твердо традиции(«Сунна») Посланника Аллаха(да благословит его Аллах и род его!). Якобы он совершил молитву пьяным, запутался в словах, и тогда Аллах ниспослал аят, запрещающий молиться пьяным(о подлинном толковании аята напишем позже).
Ашариты склонны считать, что это обвинение исходит только из уст Ибн Теймии, который пишет: «Всевышний Аллах ниспослал относительно Али ибн Абу Талиба следующий аят:
قال في منهاج السنة ما نصه: «وقد أنزل الله تعالى في علي: {يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ} [سورة النساء] ، لما صلى فقرأ وخلط» اهـ.ـ
«О те, которые уверовали! Не приближайтесь к молитве, будучи пьяными, пока не станете понимать то, что произносите…» (Ан-Ниса, 43) — когда он (Али ибн Абу Талиб) совершал молитву и перепутал во время чтения (Корана в молитве — прим.)…»
(Источник: «Минхадж ас-сунна ан-набавийя», стр.102).
Но по правде Ибн Теймия ничего нового не придумывал. До него сунниты уже успели записать в своих книгах эту клевету. Здесь перечислено большинство источников, в которых ему приписывается распитие алкогольных напитков до явного запрета:
اخرج الترمذي في سننه (1) عن عبد بن حُميدٍ: قال: حدثنا عبد الرحمن ابن سعدٍ، عن جعفر الرازي، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن السُلميّ، عن علي بن أبي طالب (عليه السلام) قال: صنع لنا عبد الرحمن بن عوف طعاما، فدعانا وسقلنا من الخمر، فأخذت الخمر منّا، وحضرت الصلاة، فقدموني فقرأت: قل ياأيها الكافرون لا أعبد ماتعبدون ونحن نعبد ما تعبدون، قال: فأنزل الله: (ياأيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون).
قال أبو عيسى: هذا حديث حسن غريب صحيح.
وأخرج أبو داود في (سننه) (2) عن مسدد قال: أخبرنا يحيى، عن سفيان، قال: أخبرنا عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن السُلميّ، عن علي بن أبي طالب (عليه السلام): أن رجلا من الأنصار دعاه وعبد الرحمن بن عوف، فسقاهما قبل أن تحرّم الخمر، فأمهم علي (عليه السلام) في المغرب وقرأ: (قل ياأيها الكافرون) فخلط فيها، فنزلت: (لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون).
وأخرجه النسائي في (سننه) (3) عن عمر بن علي، عن أبن مهدي، عن سفيان نحوه.
وأخرج أبن جرير في (تفسيره) (4) عن المثنى، قال: حدثنا الحجاج بن المنهال قال: حدثنا حماد، عن عطاء بن السائب، عن عبد الله بن حبيب: أن عبد الرحمن بن عوف صنع طعاما وشرابا، فدعا نفراً من أصحاب النبي (صلى الله عليه وآله) فأكلوا وشربوا حتى ثملوا، فقدموا عليا (عليه السلام) يصلي بهم المغرب، فقرأ قل ياأيها الكافرون أعبد ما تعبدون وأنا عابد ما عبدتم لكم دينكم ولي دين، فأنزل الله تبارك وتعالى هذه الآية (لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون).
وأخرج بن جرير في (تفسيره) (5) أيضا عن محمد بن بشارٍ قال: حدثنا عبد الرحمن: حدثنا سفيان، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن، عن علي (عليه السلام): أنه كان هو وعبد الرحمن ورجا آخر شربوا الخمر، فصلى بهم عبد الرحمن، فقرأ: (قل ياأيها الكافرون) فخلط فيها، فنزلت: (لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون).
وأخرج أبن المنذر عن عكرمة في قوله تعالى: (ياأيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى) قال: نزلت في أبي بكر وعمر وعلي وعبد الرحمن بن عوف وسعد، صنع علي لهم طعاما وشرابا فأكلوا وشربوا، ثم صلى علي بهم المغرب، فقرأ: (قل ياأيها الكافرون) حتى خاتمتها، فقال: ليس لي دين وليس لكم دين، فنزلت: (لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى) (6).
وأخرج أيضاً (7) عن موسى بن هارون الهمداني، قال: حدثنا بن حماد، قال: حدثنا بن نضر، عن إسماعيل بن عبد الرحمن بن أبي كريمة السُديّ قال: نزلت هذه الآية: (يسألونك عن الخمر والميسر) ـ الآية، فلم يزالوا بذلك يشربونها حتى صنع عبد الرحمن بن عوف طعاماً، فدعا ناساً من أصحاب النبي (صلى الله عليه وآله) فيهم علي بن أبي طالب (عليه السلام)، فقرأ: (قل ياأيها الكافرون) فلم أفهمها، فأنزل الله عز وجل يشدد في الخمر (ياأيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون)... إلى آخره.
وأخرج أحمد في (مسنده) (
عن سُرَيج ـ يعني ابن نعمان ـ قال: حدثنا أبو معشر، عن أبي وهب، عن أبي هريرة، قال حُرمت الخمر ثلاث مرات، قدم رسول الله (صلى الله عليه وآله) المدينة وهم يشربون الخمر، ويأكلون الميسر، فسألوا رسول الله (صلى الله عليه وآله) عنهما، فأنزل الله على نبيه (صلى الله عليه وآله): (يسألونك عن الخمر والميسر قل فيهما إثم كبير ومنافع للناس وإثمهما أكبر من نفعهما) إلى آخر الآية، فقال الناس: ما حرّم علينا، إنما قال: (فيهما إثم كبير) ىوكانوا يشربون الخمر، حتى إذا كان يوم من الأيام صلى رجل من المهاجرين أمّ أصحابه في المغرب خلط في قرآءته، فأنزل الله فيها آية أغلظ منها (ياأيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون) ـ الحديث.
وأخرج ابن جرير (9) عن هنّاد بن السريّ، قال: حدثنا يونس بن بكير، قال: حدثني أبو معشر المدني، عن محمد بن قيس فذكر نحوه.
وأخرج البزّار في (مسنده) (10) عن أحمد بن محمد بن سعيد الأنماطي، عن عبد الرحمن بن عبد الله سعد الدشتكي، عن أبي جعفر الرازي، عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن، عن علي (عليه السلام) قال: صنع لنا عبد الرحمن بن عوف طعاماً، فدعانا فأكلنا وشربنا من الخمر، فلما أخذت الخمر فينا وحضرت الصلاة أمروا رجلا فصلى بهم فقرأ: (يا أيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون). قال البراز: وهذا الحديث لا نعلمه يروى عن علي (عليه السلام) متصل الإسناد إلا من حديث عطاء بن سائب، عن أبي عبد الرحمن.
قال: وإنما كان ذلك قبل تحريم الخمر، فحرّمت من أجل ذلك (11).
قال: لا يخفى عليك ما في هذا الحرف الأخير من كلامه، فإن القوم رووا ما يفيد أن تحريم الخمر لم يكن بسبب هذه القصة، بل لأمر آخر يأتي ذكره إن شاء الله تعالى.
وأخرج الحاكم في (المستدرك) (12) عن محمد بن علي بن دحيم الشيبانيّ، قال: حدثنا أحمد بن حازم الغفاريّ، حدثنا أبو نعيم وقبيضة، قالا: حدثنا سفيان، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن، عن علي (عليه السلام) قال: دعانا رجل من الأنصار قبل تحريم الخمر، فحضرت صلاة المغرب فتقدم رجل فقرأ: (قل يا أيها الكافرون) فالتُبس عليه، فنزلت: (لاتقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون)، الآية.
وأخرج في (المستدرك) (13) أيضا عن أبي عبد الله محمد بن يعقوب الحافظ، قال: حدثنا علي بن الحسن، حدثنا عبد الله بن الوليد، حدثنا سفيان.
قال الحاكم: وحدثنا أبو زكريا يحيى بن محمد العنبريّ، حدثنا أبو عبد الله البوشنجي، حدثنا أحمد بن حنبل، حدثنا وكيع، حدثنا سفيان، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن السُّلمي، عن علي (عليه السلام) قال: دعانا رجل من الأنصار قبل أن تحرم الخمر، فتقدم عبد الرحمن بن عوف وصلى بهم المغرب، فقرأ: (قل يا أيها الكافرون) فالتبس عليه فيها، فنزلت: (لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى).
قال الحاكم: هذا الحديث صحيح الإسناد ولم يخرجاه، وقد اختلف فيه على عطاء بن السائب من ثلاثة أوجه، وهذا أوّلها وأصحها.
و (الوجه الثاني) حدثناه أبو زكريا العنبريّ، حدثنا أبو عبد الله البوشنجي، حدثنا أحمد بن حنبل، حدثنا عبد الرحمن بن مهدي، حدثنا سفيان، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن، عن علي (عليه السلام) أنه كان هو وعبد الرحمن ورجل آخر يشربون الخمر، فصلى بهم عبد الرحمن بن عوف، فقرأ: (قل يا أيها الكافرون) فخلط فيها فنزلت: (لا تقربوا الصلاو وأنتم سكارى).
و (الوجه الثالث) حدثنا العنبري، حدثنا أبو عبد الله البوشنجي، حدثنا مسدّد بن مسرهد، أنبأنا خالد بن عبد الله، عن عطاء بن السائب، عن أبي عبد الرحمن، أن عبد الرحمن صنع طعاما، قال: فدعا ناسا من أصحاب النبي (صلى الله عليه وآله) فيهم علي بن أبي طالب، فقرأ: قل يا أيها الكافرون، لا أعبد ماتعبدون ونحن عابدون ماعبدتم، فأنزل الله عز وجل: (ياأيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى حتى تعلموا ما تقولون).
Хаким опровергает это предание, понимая, что оно является клеветой хариджитов. Хаким приводит оригинальное предание, в котором не фигурирует Али(мир ему!) в качестве выпившего алкоголь:
رواه الحاكم في المستدرك بالإسناد عن علي رضي الله عنه قال: دعانا رجل من الأنصار قبل تحريم الخمر، فَحَضَرَت صلاة المغرب فتقدم رجل فقرأ: {قُلْ يَاأَيُّهَا الْكَافِرُونَ} [سورة الكافرون] فالتبس عليه فنزلت: {لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ} [سورة النساء] الآية.ـ
«Ещё до ниспослания аята о запрете употребления алкоголя, нас позвал к себе один из ансаров. Когда мы находились у него, наступило время вечерней молитвы. Человек выступил вперёд и прочитал: «Скажи: «О неверующие!» (сура «Аль-Кафирун») — и запутался. Тогда был ниспослан аят:
{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ}
«О те, которые уверовали! Не приближайтесь к молитве, будучи пьяными, пока не станете понимать то, что произносите…» (Ан-Ниса, 43)».
قال الحاكم: «هذا حديث صحيح الإسناد ولم يخرجاه، وفي هذا الحديث فائدة كثيرة وهي أن الخوارج تنسب هذا السكر وهذه القراءة إلى أمير المؤمنين علي بن أبي طالب دون غيره، وقد برَّأه الله منها فإنه راوي هذا الحديث» اهـ، ووافقه الذهبي على تصحيحه .
Хаким сказал: «Это хадис с достоверной цепочкой передатчиков, который не привели в своих сборниках имамы Аль-Бухари и Муслим. В этом хадисе имеется огромная польза, которая заключается в том, что хариджиты приписывают это опьянение и ошибочное чтение повелителю верующих Али ибн Абу Талибу, да смилостивится над ним Аллах, а не другому. Всевышний Аллах очистил его от этого, поскольку Али ибн Абу Талиб является передатчиком данного хадиса». Аз-Захаби согласился с Хакимом относительно достоверности данного хадиса.
(Источник: «Мустадрак», Хаким)
Интерпретация аята от Ахли Байт(мир им!):
محمد بن يعقوب: عن محمد بن يحيى، عن أحمد بن محمد، عن حماد بن عيسى، عن الحسين ابن المختار، عن أبي اسامة زيد الشحام، قال: قلت لأبي عبد الله (عليه السلام): قول الله عز و جل: { لاَ تَقْرَبُواْ ٱلصَّلَٰوةَ وَأَنْتُمْ سُكَٰرَىٰ }. فقال: " سكر النوم ".
«..опьянение сна».
(Источник: «аль-Кафи», «تفسير نور الثقلين»)
Табари передает в числе прочего схожее толкование от Дахака:
حدثنا ابن وكيع , قال : ثنا أبي , عن سلمة بن نبيط , عن الضحاك : { لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى } قال : سكر النوم . * - حدثنا أحمد بن حازم الغفاري , قال : ثنا أبو نعيم , قال : ثنا سلمة , عن الضحاك : { يا أيها الذين آمنوا لا تقربوا الصلاة وأنتم سكارى } قال : لم يعن بها سكر الخمر , وإنما عنى بها سكر النوم.
«..опьянение сна»
(Источник: «Тафсир Табари»)
Теперь задумайтесь над выдуманной ими историей про напившегося, который решил совершить молитву: сколько алкоголя нужно выпить, чтоб начала путаться речь? В первой стадии(при небольшом количестве алкоголя) человек весел, возбужден, охотно рассказывает истории. При глубокой стадии опьянения начинаются нарушения речи, спутанность сознания, что есть следствие торможения в коре полушарий головного мозга, которое приходит на смену возбуждению в коре.
Передано о трех вещах, которые Имам Али(мир ему!) никогда не делал в своей жизни: не поклонялся идолам, не совершал блуд, не употреблял алкоголь:
ما رواه الهادي إلى الحق يحيى بن الحسين بن القاسم بإسناده إلى أمير المؤمنين (عليه السلام) قال: ثلاث ما فعلتهن قط ولا أفعلهن أبدا: ما عبدت وثنا قط، وذلك لأني لم أكن لأعبد ما يضرني ولا ينفعني، ولا زنيت قط، وذلك لأني أكره في حرمة غيري ما أكره في حرمتي، ولا شربت خمرا قط، وذلك أني لما يزيد في عقلي أحوج مني إلى
ما ينقص منه
https://vk.com/@islamictradition-alimir-emu-pil-alkogol
В другом месте этого труда Ибн Таймийя пишет: «Всевышний Аллах ниспослал относительно Али ибн Абу Талиба следующий аят:
قال في منهاج السنة ما نصه: «وقد أنزل الله تعالى في علي: {يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ} [سورة النساء] ، لما صلى فقرأ وخلط» اهـ.ـ
«О те, которые уверовали! Не приближайтесь к намазу, будучи пьяными, пока не станете понимать то, что произносите…» (Ан-Ниса, 43) — когда он (Али ибн Абу Талиб) совершал намаз и перепутал во время чтения (Корана в намазе — прим. пер.)…» («Минхадж ас-сунна ан-набавийя», стр.102).
Однако ложность данного утверждения Ибн Таймийи подтверждается хадисом, который привёл имам Аль-Хаким (321 — 405гг.х.), да смилостивится над ним Аллах, в «Аль-Мустадраке» от Али ибн Абу Талиба, ؓ, который сказал:
رواه الحاكم في المستدرك بالإسناد عن علي رضي الله عنه قال: دعانا رجل من الأنصار قبل تحريم الخمر، فَحَضَرَت صلاة المغرب فتقدم رجل فقرأ: {قُلْ يَاأَيُّهَا الْكَافِرُونَ} [سورة الكافرون] فالتبس عليه فنزلت: {لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ} [سورة النساء] الآية.ـ
«Ещё до ниспослания аята о запрете употребления алкоголя, нас позвал к себе один из ансаров. Когда мы находились у него, наступило время вечернего намаза. Человек выступил вперёд (то есть встал имамом в намазе — прим. пер.) и прочитал: «Скажи: «О неверующие!» (сура «Аль-Кафирун») — и запутался. Тогда был ниспослан аят:
{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَقْرَبُوا الصَّلاَةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى حَتَّى تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ}
«О те, которые уверовали! Не приближайтесь к намазу, будучи пьяными, пока не станете понимать то, что произносите…» (Ан-Ниса, 43)».
قال الحاكم: «هذا حديث صحيح الإسناد ولم يخرجاه، وفي هذا الحديث فائدة كثيرة وهي أن الخوارج تنسب هذا السكر وهذه القراءة إلى أمير المؤمنين علي بن أبي طالب دون غيره، وقد برَّأه الله منها فإنه راوي هذا الحديث» اهـ، ووافقه الذهبي على تصحيحه .
Имам Аль-Хаким сказал: «Это хадис с достоверной цепочкой передатчиков, который не привели в своих сборниках имамы Аль-Бухари и Муслим. В этом хадисе имеется огромная польза, которая заключается в том, что хариджиты приписывают это опьянение и ошибочное чтение повелителю правоверных Али ибн Абу Талибу, да смилостивится над ним Аллах, а не другому. Всевышний Аллах очистил его от этого, поскольку Али ибн Абу Талиб является передатчиком данного хадиса». Аз-Захаби согласился с имамом Аль-Хакимом относительно достоверности данного хадиса.
Таким образом, более чем за 300 (триста) лет до Ибн Таймийи имам Аль-Хаким записал данный хадис в своём сборнике. Знал ли об этом Ибн Таймийя, о котором его почитатели любят приводить фразу одного из его хвалителей: «хадис, который не знал Ибн Таймийя, не является хадисом»!?